आज यहां पर आपकी एक कंफ्यूजन या यूं कहें तो आधी इल्म मुकम्मल होगी यानी यह जानने को मिलेगी की Ghusl Ki Dua होती है या नहीं होती।
अगर इसका जवाब आप जानना चाहें तो आपको बता दूं कि गुस्ल की दुआ नहीं होती अगर आप गुस्ल से रिलेटेड जानकारी चाहते हैं तो ही इस लेख को पढ़ें।
हमने यहां पर गुस्ल से रिलेटेड कई अच्छी बातें बताई है जो आपको ज़रूर पढ़ना चाहिए ताकि आप गुस्ल से जुड़ी हर छोटी बड़ी इल्म हासिल कर सकें।
Ghusl Ki Dua
आपको यह उपर में ही मालूम हुआ कि ग़ुस्ल की दुआ नहीं होती बेहतर यही होगा की आप बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहिम पढ़ कर ग़ुस्ल करना शुरू करें।
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आप चाहे तो ग़ुस्ल के लिए नियत भी कर सकते हैं जिसमें आप दिल का इरादा करेंगे वही काफी है लफ्ज़ से कहना चाहे तो यूं कहें
“मैं नियत करता हूं गुस्ल की अपने रब की रजा और खुद की सवाब के लिए”
आइए अब आगे जानते हैं कि ग़ुस्ल किस तरह से की जाय और यह क्या है और क्यों जरूरी है इन सभी बातों का जवाब इस लेख में जानेंगे।
ग़ुस्ल का अर्थ क्या है?
ग़ुस्ल का अर्थ पाकीज़गी या मॉडर्न वर्ड में यूं कहूं तो स्नान होता है लेकिन इसे तरीके से मुकम्मल यानी पुरा करना होता है।
जिस में ग़ुस्ल की फर्ज, सुन्नत और कई वाजिबात अहमियत रखती है अगर यह पुरी नहीं होगी तो आपकी ग़ुस्ल मुकम्मल नहीं होगी।
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ग़ुस्ल क्यों जरूरी है?
हर तरह के नेक व जायज नमाज व कुरान पढ़ने के लिए ग़ुस्ल बहुत जरूरी है नमाज पढ़ने के लिए ग़ुस्ल करना ही होगा।
कुरान पाक पढ़ने के साथ साथ छूने में भी ग़ुस्ल जरूरी है कहीं पर भी खास जगह जैसे औलियों की दरबार में हाजिर होने से पहले ग़ुस्ल कर लेना चाहिए।
हर वो जगह हर वो मकाम हर वो नेक काम और और हर वो नेक इबादत जिसमें हमें अपने रब से सामना करना हो ग़ुस्ल कर लेना चाहिए।
आप भी शायद जानते ही होंगे कि ग़ुस्ल यानी इस पाकीज़गी से भी हमारी और आपकी आधी ईमान मजबूत व महफूज रहती है।
अंतिम लफ्ज़
अब तक तो आप इस गलतफहमी से निकल ही गए होंगे कि गुस्ल की दुआ नहीं होती और इसके बाद हमेशा गुस्ल की नियत से गुस्ल करेंगे।
अगर अभी भी आपके मन में गुस्ल की दुआ से रिलेटेड कोई सवाल या फिर किसी तरह का कोई डाउट हो तो कॉन्टेक्ट मी के ज़रिए हमसे संपर्क करें।
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